Saturday, August 12, 2017

*नदी जब निकलती है,*
*कोई नक्‍शा पास नहीं होता कि "सागर" कहां है।*

*बिना नक्‍शे के सागर तक पहुंच जाती है।*
*ऐसा नहीँ है कि नदी कुछ नहीँ करती है।*
*उसको "सागर" तक पहुंचने के लिए लगातार "बहना" अर्थात "कर्म" करना पड़ता है।*

*इसलिए "कर्म" करते रहिये,*
*नक्शा तो भगवान् पहले ही बनाकर बैठे है ।*
*हमको तो सिर्फ "बहना" ही है ।।*

* सुप्रभात्🙏🏻🌞*

कवि अब्दुल गफ्फार की सिंह गर्जना

कवि अब्दुल गफ्फार की सिंह गर्जना
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"ओ हामिद अंसारी बोलो,ये जुमला क्यों बोल गये
जाते जाते सदभावों में,ज़हर बता क्यों घोल गये
बैठ वहां ऊंचे मकान में,व्यर्थ आप चिल्लाते हैं
गांवों की दर असल हक़ीक़त,हम तुमको बतलाते हैं
शस्य श्यामला इस धरती के जैसा कोई और नहीं
भारत माता की गोदी से प्यारी कोई ठोर नहीं
घर से बाहर ज़रा निकल के अकल खुजाकर के पूछो
हम कितने हैं यहां सुरक्षित हमसे आकर के पूछो
पूछो हमसे ग़ैर मुल्क में मुस्लिम कैसे जीते हैं
पाक़,सीरिया,फिलस्तीन में,खूं के आंसू पीते हैं
लेबनान,टर्की,इराक़ में भीषण हाहाकार हुए
अल बगदादी के हाथों,मस्जिद में नर संहार हुए
इज़राइल की गली गली में मुस्लिम मारा जाता है
अफ़ग़ानी सड़कों पर ज़िंदा शीश उतारा जाता है
केवल भारत देश,जहां सिर गौरव से तन जाता है
यही मुल्क है जहां मुसलमान राष्ट्रपति बन जाता है
इसीलिए कहता हूं तुमसे,यों भड़काना बंद करो
साक्ष्य हीन ऐसे जुमलों से,हमें लड़ाना बंद करो
बंद करो नफ़रत की स्याही से लिक्खी पर्चेबाजी
बंद करो इस हंगामे को,बंद करो ये लफ़्फाजी
ऐसा कहके अमृत घट में तुमने तो विष भर डाला
जिस थाली में खाया तुमने छेद उसी में कर डाला"

अब्दुल गफ्फार (जयपुर)