🌞⛳ शुभ प्रभात ⛳🌞
कमाई पर्याप्त नही हो ,
तो ...
ख़र्चो पर अंकुश होना चाहिए ।
और..
जानकारी पर्याप्त नही हो ,
तो ..
चर्चा पर अंकुश लगाना चाहिए ।
🙏🏻मात नर्मदे हर 🕉राधे राधे🙏🏻
"यादें बचपन की "
............!!!!
वो ! भी क्या दिन थे .......
बारिश में भींगना.........
बरसते पानी में फुटवाल
खेलना......
भागना दौड़ना दौड़ाना....
वो !बहता पानी कागज़
की नाव .....
बनाकर तैराना.........
कितना पुर शुकून था......
वो ! पल ! वो! शरारतें
वो ! यादें बचपन की......
स्कूल से भीगकर आना
माँ की डाँट! पिता की फटकार........!
गीले बालों और शरीर को
पोछना ........
वो ! माँ की "झिड़की".....
अब !भीगकर आया तो
समझ लेना.......!
वो! माँ का प्यार !दुलार!
जाने कँहा खो गया ,खो गया वो !बचपन .......
वो! खो-खो कब्बड्डी.......
जब !पहनते थे "चड्डी"....!
गिरना गिराना छूना धकेलना.......
वो ! कट्टी वो ! मिठ्ठी.....!
वो ! लड़ना -झगड़ना
वो ! खींचा-तानी......
वो !मुक्कों का प्रहार.....!
फिर ! भी हार न जीत
सब के सब आपस में
मनमीत.........!
जाने ! कँहा खो गया
वो! बचपन........
माँ ! खोई !पिता!खोया....
खोया !वो !बचपन......!
जवानी !खोई!बुढ़ापा आया.......
न आया वो! बचपन.....!
बस !एक अहसास है .....
काश !माँ !फिर से डांटे-
दुलारे.......!
लेकिन !माँ भी तो खो चुकी ! किसे ! खोजूं....!
वो ! माँ !वो!बचपन.......
वो !यादें ! बचपन की........!!
बी.डी. गुहा रायपुर छत्तीसगढ़✍😌🌹🙏
"फिसलन "
सिक्कों को खनकते देखा है .........!
नोट ! के आगे ईमान !को फिसलते देखा है ......!!
चांदी के जूतों !को बरसते
देखा है .........!
ब-अदब-बे-आवाज़......
बद-चलन को संभल कर
चलते देखा है .......!!
बड़ा ! अजीब दौर है ये
फिसल कर!गिरने वालों को ........!
गिरकर! फिसलने वालों
पर हँसते देखा है ......!!
खोटे ! सिक्कों की नसीहत.......!
ज़रा !संभल कर चलना
जनाब ! नकाबों का शहर है .......
फिसलन ! भरी राहों पर
मील! के पत्थर !नहीं हुआ करते हैं.......
ज़रा !संभल कर चलना
ज़नाब!
आगे !रास्ता बंद है ........!
तंग !गली ! दरवाजा बंद है.......
फिसलन ......!!
बी.डी.गुहा रायपुर छत्तीसगढ़✍🙏
एक इंटरव्यू चल रहा था 😒नौकरी पहले ही बॉस के साले के लिये पक्की हो चुकी थी..,
..
लेकिन दिखावे के लिये इंटरव्यू तो लेना ही था,
...😕
इसलिये ऐसे सवाल पूछे जा रहे थे, जिनका कोई जवाब संभव नहीं था, एक के बाद एक केंडीडेट आ रहे थे, जा रहे थे....!
...😌
फिर दूबेजी की बारी आयी....!!
...
😋इंटरव्यू लेने वाला:--- आप नदी के बीच एक बोट पर हैं, और आपके पास दो सिगरेट के अलावा कुछ भी नही है....!!!
..
आपको एक सिगरेट जलानी है, कैसे जलाओगे...??
..
😚दूबेजी बड़े सीरियसली सोचने के बाद बोले.......!
...
..
.
😏सर इसके तीन-चार सोल्युशन हो सकते हैं......!!
.... ..
😳इंटरव्यू लेने वाले को बहुत आश्चर्य हुआ कि जिस सवाल का एक भी जवाब नही हो सकता, उसके तीन-चार जवाब कहां से आ गये...... उसने बोला बताओ....!!
...
☺दूबेजी का पहला अनोखा जवाब:---
एक सिगरेट पानी में फेंक दो, then boat will become lighter (हल्की),
और "lighter" से आप सिगरेट जला सकते हैं.....!
...
..
😳इंटरव्यू लेने वाला(Shocked).......?😳
...
😨दूबेजी का दुसरा खतरनाक जवाब:---
Throw a cigaratte up and catch it,
"Catches win the Matches",
using the matches that you win, you can light the cigarette.....!!
...
😨Interviewer was speechless.....??
...
😜सर अभी तो एक उपाय और है......!
Take some water in your hand and drop it,
drop-by-drop.
It will sound like ..Tip..Tip-Tip..Tip....!!
...
😵Interviewer:--- उससे क्या होगा.....???
..
😌सर आपने वो गाना नही सुना "टिप-टिप बरसा पानी, पानी ने आग लगाई....."!!!😒
...
इस आग से आप अपनी सिगरेट जला सकते हैं.....!😜
😉सर यदि ये काफी नही हैं तो अभी भी मेरे पास एक और उपाय है, वह भी सुन लीजिए:---😋
...
😘आप एक सिगरेट से प्यार करने लगिए, दूसरी अपने आप जलने लगेगी.....!!😜
...
..
.
😱इंटरव्यू लेने वाला चकित हो गया और चिल्ला कर बोला:---😨
...
..
😰"साले".......को मारो गोली, नौकरी तो दूबेजी को ही मिलेगी....
सुनो वृक्ष की पुकार
चूँकि वृक्ष हूँ मैं
जड़ नहीं चेतन हूँ मैं
मुझमे ज्ञान है संज्ञान है ,विज्ञान
आध्यात्म और आर्युर्वेद गुणों की खान हूँ मैं........
चूँकि वृक्ष हूँ मैं
कृतग्न्य नहीं कृतज्ञ हूँ नम्र नहीं विनम्र हूँ मैं ...........
जेठ की तपिस में तपा लगातार
चौमासे भर भीगा बारम्बार
पूस की सर्द-शीत से रहा अविचलित
अविराम........
बसंत में पुष्पित-पल्लवित -श्रृंगारित
बना सुगंध बहार.........
चूँकि वृक्ष हूँ मैं
कोयल की कूक वानरों की उछल-कूद
पक्षियों के कोरस शब्द-गान
पवन संग झूमा बिन अभिमान
चाहे कितना भी विशाल हो आकार
लेश ! मात्र भी नहीं अहंकार
चूँकि वृक्ष हूँ मै...........
जीवन भर-जी-वनोपरांत संकल्प के
प्रति कृत संकल्प
प्रकृति का अनमोल उपहार हूँ
नहीं उपकार ......
न जाने क्यूँ मानव के अधिकार.....!
या कंहू अनाधिकार......!!
कुल्हाड़े का वार आरे की धार.....!
होता रहा वार -पर-वार प्रहार .......
धरासायी मेरा परिवार .........!
जब भी गिरा धरती माँ की गोद में
नमन कर माना आभार ......!
चूँकि वृक्ष हूँ मैं .........
बहुत हो चूका मानवाधिकार ........
बंद करो कुल्हाड़े का वार प्रहार
बंद करो अत्याचार मत करो
मेरा संहार .........!
जाने कब ! होगा शर्मशार ! मानवाधिकार ..........!
मुझे चाहिए वृक्षाधिकार...........!
मुझे चाहिए वृक्षाधिकार..........!!
अब तो सुनो वृक्ष की आर्तनाद भरी
पुकार..........!
मुझे चाहिए रक्षण-पोषण-और वरण
तभी बचेगा पर्यावरण ..........!
मुक्त पवन उन्मुक्त गगन में लेने दो
आकार .........!
जड़ नहीं चेतन हूँ में .......!
चूँकि वृक्ष हूँ मैं
मुझे चाहिए वृक्षाधिकार ,मुझे चाहिए
वृक्षाधिकार
सुनो वृक्ष की पुकार ..........!!!
✍स्वरचित रचना बी. डी .गुहा
रायपुर छतीसगढ़