Sunday, July 2, 2017

सुनो वृक्ष की पुकार

सुनो वृक्ष की पुकार

चूँकि वृक्ष हूँ मैं
जड़ नहीं चेतन हूँ मैं
मुझमे ज्ञान है संज्ञान है ,विज्ञान
आध्यात्म और आर्युर्वेद गुणों की खान हूँ मैं........
       चूँकि वृक्ष हूँ मैं
कृतग्न्य नहीं कृतज्ञ हूँ नम्र नहीं विनम्र हूँ मैं ...........
जेठ की तपिस में तपा लगातार
चौमासे भर भीगा बारम्बार
पूस की सर्द-शीत से रहा अविचलित
अविराम........
बसंत में पुष्पित-पल्लवित -श्रृंगारित
बना सुगंध बहार.........
       चूँकि वृक्ष हूँ मैं
कोयल की कूक वानरों की उछल-कूद
पक्षियों के कोरस शब्द-गान
पवन संग झूमा बिन अभिमान
चाहे कितना भी विशाल हो आकार
लेश ! मात्र भी नहीं अहंकार
      चूँकि वृक्ष हूँ मै...........
जीवन भर-जी-वनोपरांत संकल्प के
प्रति कृत संकल्प
प्रकृति का अनमोल उपहार हूँ
        नहीं उपकार ......
न जाने क्यूँ मानव के अधिकार.....!
या कंहू अनाधिकार......!!
कुल्हाड़े का वार आरे की धार.....!
होता रहा वार -पर-वार प्रहार .......
धरासायी मेरा परिवार .........!
जब भी गिरा धरती माँ की गोद में
नमन कर माना  आभार ......!
         चूँकि वृक्ष हूँ मैं .........
बहुत हो चूका मानवाधिकार ........
बंद करो कुल्हाड़े का वार प्रहार
बंद करो अत्याचार  मत करो
मेरा संहार .........!
जाने कब ! होगा शर्मशार ! मानवाधिकार ..........!
मुझे चाहिए वृक्षाधिकार...........!
मुझे चाहिए वृक्षाधिकार..........!!
अब तो सुनो वृक्ष की आर्तनाद भरी
पुकार..........!
मुझे चाहिए रक्षण-पोषण-और वरण
तभी बचेगा पर्यावरण ..........!
मुक्त पवन उन्मुक्त गगन में लेने दो
आकार .........!
जड़ नहीं चेतन हूँ में .......!
         चूँकि वृक्ष हूँ मैं
मुझे चाहिए वृक्षाधिकार ,मुझे चाहिए
          वृक्षाधिकार
सुनो वृक्ष की पुकार ..........!!!
✍स्वरचित रचना बी. डी .गुहा
रायपुर छतीसगढ़

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