Saturday, April 29, 2017

परमात्म?सर्वार्थसंभवो देहो जनित: पोषितो यत:।
न तयोर्याति निर्वेशं पित्रोर्मत्र्य: शतायुषा

भावार्थ -सौ वर्ष की आयु प्राप्त करके भी माता-पिता के ऋण से उऋण नही हुआ जा सकता। वास्तव में जो शरीर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति का प्रमुख साधन है, उसका निर्माण तथा पालन-पोषण जिनके द्वारा हुआ है, उनके ऋण से मुक्त होना कठिन ही नही, सर्वथा असम्भव है।
सुप्रभातम

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