Friday, April 28, 2017

उठियें

उठियें
जल्दी घर के सारें, घर में होंगे पौबारें।

लगाइये
सवेरे मंजन, रात को अंजन।

कीजियें
मालिश तीन बार, बुध, शुक्रवार और सोमवार।

नहाइए
पहले पाँव फिर हाथ ,मुँह, फिर सिर

खाइयें
दाल, रोटी, चटनी कितनी भी हो कमाई अपनी।

पीजिये
दूध खड़े होकर, दवा पानी बैठ कर।

खिलाइये
आयें को रोटी, चाहें पतली हो या मोटी।

पिलाइए
प्यासे को पानी, चाहे हो जावे कुछ हानि।

छोडियें
अमचूर की खटाई, रोज की मिठाई।

करियें
आयें का मान, जाते का सम्मान।

सीखियें
बड़ो की सीख और बुजुर्गों की रीत।

जाईये
दुःख में पहले, सुख में पीछे।

देखियें
माता की ममता, पत्नी का धर्म।

ब्याहियें
ऐसी नार से, जो घर में रहे प्यार से।

परखिये
चाहे सबको, छोड़ देना माता को।

भगाइए
मन के डर को, बुड्डे वर को।

धोइये
दिल की कालिख को, कुटुम्ब के दाग को।

सोचिएं
एकांत में, करो सबके सामने।

बोलिएं
कम से कम, कर दिखाओ ज्यादा।

चलियें
तो अगाड़ी, ध्यान रहे पिछाड़ी।

सुनियें
सबो की, करियें मन की।

बोलियें
जबाब संभल कर, थोडा बहुत पहचान कर।

सुनियें
पहले पराएं की, पीछे अपने की।

रखियें
याद कर्ज के चुकाने की, मर्ज के मिटाने की।

भुलियें
अपनी बडाई को और दूसरों की भलाई को।

छिपाइएं
उमर और कमाई चाहे पूछे सगा भाई।

लिजियें
जिम्मेदारी उतनी, सम्भाल सके जितनी।

धरियें
चीज जगह पर, जो मिल जावें वक्त पर।

उठाइये
सोते हुए को नहीं गिरकर गिरे हुयें को।

लाइयें
धर में चीज उतनी काम आवे जितनी।

गाइये
सुख में राम को और दुःख मे सीताराम  को

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