Friday, April 28, 2017

जिंदगी ......

जिंदगी ......
तन्हा-तन्हा जिंदगी......
रिश्तों में दरार......
दरारों में तन्हा जिंदगी.....
क्यों जी रहे.......!
कैसे !जी रहे........?
बस !किश्तों में "सी"रहे
जिंदगी .......!
मुट्टी में रेत सामान  न रूकती न संभालती
बस !फिसलती जा रही
जिंदगी ........!
चैन न शुकून फिर भी
जिए जा रहे
जिंदगी ........!
सबके अपने "गम" है
"ग़मों" के साथ बीत रही
जिंदगी......!
कौन !किसका !गम बांटे.......!
सब ! ग़मज़दा है हमदर्द
नहीं कोई......
"हंसी"और"मुस्कुराहटें"....
"अधर"पर आते-आते किश्तों बट कर "खो" गई
जिंदगी........!
हर शख्श परेशां क्यूँ है...!
सवालों के जबाब
जबाबों के सवाल बन गई
जिंदगी........!
मृत्यु !"अटल" सत्य है ....!
एक मुश्त ......
जाने क्यूँ किश्तों में रुला रही है
जिंदगी .......!
मुट्ठी में रेत सी फिसलती
तन्हा-तन्हा संवरती बिखरती
जिंदगी........!

No comments: