Saturday, May 13, 2017

दुखी रहने के कारण. ============== 1. देरी से उठना, देरी से जगना. 2. लेन-देन का हिसाब नहीं रखना. 3. कभी किसी के लिए कुछ नहीं करना. 4. स्वयं की बात को ही सत्य बताना. 5. किसी का विश्वास नहीं करना. 6. बिना कारण झूठ बोलना. 7. कोई भी काम समय पर नहीं करना. 8. बिना मांगे सलाह देना. 9. बीते हुए सुख को बार - बार याद करना. 10. हमेशा अपने लिए सोचना. " दिमाग ठंडा हो, दिल में रहम हो, जुबान नरम हो, आँखों में शर्म हो तो फिर सब कुछ तुम्हारा है " *उठियें* जल्दी घर के सारें, घर में होंगे पौबारा। *कीजियें* मालिश तीन बार, बुध, शुक्रवार और सोमवार। *नहाइए* पहले सिर, हाथ पाँव फिर। *खाइयें* दाल, रोटी, चटनी कितनी भी हो कमाई अपनी। *पीजिये* दूध खड़े होकर, दवा पानी बैठ कर। *खिलाइये* आयें को रोटी, चाहें पतली हो या मोटी। *पिलाइए* प्यासे को पानी, चाहे हो जावे कुछ हानि। *छोडियें* अमचूर की खटाई, रोज की मिठाई। *करियें* आयें का मान, जाते का सम्मान। *जाईये* दुःख में पहले, सुख में पीछे। *भगाइए* मन के डर को, बुड्डे वर को। *धोइये* दिल की कालिख को, कुटुम्ब के दाग को। *सोचिएं* एकांत में, करो सबके सामने। *बोलिएं* कम से कम, कर दिखाओ ज्यादा। *चलियें* तो अगाड़ी, ध्यान रहे पिछाड़ी। *सुनियें* सबो की, करियें मन की। *बोलियें* जबान संभल कर, थोडा बहुत पहचान कर। *सुनियें* पहले पराएं की, पीछे अपने की। *रखियें* याद कर्ज के चुकाने की, मर्ज के मिटाने की। *भुलियें* अपनी बडाई को और दूसरों की बुराई को। *छिपाइएं* उमर और कमाई, चाहे पूछे सगा भाई। *लिजियें* जिम्मेदारी उतनी, सम्भाल सके जितनी। *धरियें* चीज जगह पर, जो मिल जावें वक्त पर। *उठाइये* सोते हुए को नहीं, गिरे हुयें को। *लाइयें* घर में चीज उतनी, काम आवे जितनी। *गाइये* *सुख में राम को और दुःख मे सीताराम को।* सभी को राम

दुखी रहने के  कारण.
==============
1. देरी से उठना, देरी से जगना. 2. लेन-देन
का हिसाब नहीं रखना.
3. कभी किसी के लिए कुछ
नहीं करना. 4. स्वयं की बात
को ही सत्य बताना.
5. किसी का विश्वास नहीं करना. 6.
बिना कारण झूठ बोलना.
7. कोई भी काम समय पर नहीं करना. 8.
बिना मांगे सलाह देना.
9. बीते हुए सुख को बार - बार याद करना. 10.
हमेशा अपने लिए सोचना.
" दिमाग ठंडा हो, दिल में रहम हो, जुबान नरम हो, आँखों में शर्म
हो तो फिर सब कुछ तुम्हारा है "
*उठियें*
जल्दी घर के सारें, घर में होंगे पौबारा।

*कीजियें*
मालिश तीन बार, बुध, शुक्रवार और सोमवार।

*नहाइए*
पहले सिर, हाथ पाँव फिर।

*खाइयें*
दाल, रोटी, चटनी कितनी भी हो कमाई अपनी।

*पीजिये*
दूध खड़े होकर, दवा पानी बैठ कर।

*खिलाइये*
आयें को रोटी, चाहें पतली हो या मोटी।

*पिलाइए*
प्यासे को पानी, चाहे हो जावे कुछ हानि।

*छोडियें*
अमचूर की खटाई, रोज की मिठाई।

*करियें*
आयें का मान, जाते का सम्मान।

*जाईये*
दुःख में पहले, सुख में पीछे।

*भगाइए*
मन के डर को, बुड्डे वर को।

*धोइये*
दिल की कालिख को, कुटुम्ब के दाग को।

*सोचिएं*
एकांत में, करो सबके सामने।

*बोलिएं*
कम से कम, कर दिखाओ ज्यादा।

*चलियें*
तो अगाड़ी, ध्यान रहे पिछाड़ी।

*सुनियें*
सबो की, करियें मन की।

*बोलियें*
जबान संभल कर, थोडा बहुत पहचान कर।

*सुनियें*
पहले पराएं की, पीछे अपने की।

*रखियें*
याद कर्ज के चुकाने की, मर्ज के मिटाने की।

*भुलियें*
अपनी बडाई को और दूसरों की बुराई को।

*छिपाइएं*
उमर और कमाई, चाहे पूछे सगा भाई।

*लिजियें*
जिम्मेदारी उतनी, सम्भाल सके जितनी।

*धरियें*
चीज जगह पर, जो मिल जावें वक्त पर।

*उठाइये*
सोते हुए को नहीं,  गिरे हुयें को।

*लाइयें*
घर में चीज उतनी, काम आवे जितनी।

*गाइये*
*सुख में राम को और दुःख मे सीताराम  को।*
सभी को राम

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