Thursday, May 25, 2017

माँ पर मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा गीत “उसको नही देखा हमने कभी, पर इसकी जरूरत क्या होगी, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी“, मुझे स्ट्राईक किया ,,,,, ये गीत विविध भारती पर खूब बजता था। उस वक्त गीत के बोलों और भाव से ज्यादा घोड़ों के टापूओं (खुरों) की “टक टक” की आवाज ज्यादा अच्छी लगती थी, फिर धीरे धीरे उम्र बढ़ी और “टक टक” की आवाज दूर होती गयी और उसकी जगह माँ के प्रति प्यार के भावों ने ले ली। इस गीत को 1966 में रीलिज हुई फिल्म “दादी माँ” के लिये मन्ना दा और महेन्द्र कपूर ने गाया था और संगीत दिया था रोशन ने। फिल्म में मुख्य भूमिका में थे अशोक कुमार, माँ का किरदार किया था बीना रॉय ने, दादी माँ बनी थी दुर्गा खोटे। ये गीत फिल्माया गया था बीना रॉय, दिलीप राज और काशीनाथ के ऊपर। आज दुनिया की सभी माँओं को ये गीत समर्पित है - उसको नहीं देखा हम ने कभी पर इसकी ज़रूरत क्या होगी ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी उसको नहीं देखा हम ने कभी… इंसान तो क्या देवता भी आँचल में पले तेरे है स्वर्ग इसी दुनिया में कदमों के तले तेरे ममता ही लुटाये जिसके नयन ओ ओ… ममता ही लुटाये जिसके नयन ऐसी कोई मूरत क्या होगी ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी उसको नहीं देखा हम ने कभी… क्यूँ धुप जलाये दुखो की क्यूँ ग़म की घटा बरसे ये हाथ दुआओं वाले रहते हैं सदा सर पे तू है तो अंधेरे पथ में हमें ओ ओ.. तू है तो अंधेरे पथ में हमें सूरज की ज़रूरत क्या होगी ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी उसको नहीं देखा हम ने कभी… कहते हैं तेरी शान में जो कोई ऊँचे बोल नहीं भगवान के पास भी माता तेरे प्यार का मोल नहीं हम तो ये ही जाने तुझ से बड़ी ओ ओ.. हम तो ये ही जाने तुझ से बड़ी संसार की दौलत क्या होगी ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी उसको नहीं देखा हम ने कभी… पर इसकी ज़रूरत क्या होगी ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी उसको नहीं देखा हम ने कभी… इस पोस्ट का फिलहाल अंत कुंवर बेचैन जी की लिखी इन चंद लाइनों के साथ - अभी उफनती हुई नदी हो, अभी नदी का उतार हो माँ, रहो किसी भी दशा-दिशा में, तुम अपने बच्चों का प्यार हो माँ। नरम सी बाहों में खुद झुलाया, सुना के लोरी हमें सुलाया , जो नींद भर कर कभी न सोई, जनम-जनम की जगार हो माँ।

माँ पर मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा गीत “उसको नही देखा हमने कभी, पर इसकी जरूरत क्या होगी, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी“, मुझे स्ट्राईक किया ,,,,, ये गीत विविध भारती पर  खूब बजता था। उस वक्त गीत के बोलों और भाव से ज्यादा घोड़ों के टापूओं (खुरों) की “टक टक” की आवाज ज्यादा अच्छी लगती थी, फिर धीरे धीरे उम्र बढ़ी और “टक टक” की आवाज दूर होती गयी और उसकी जगह माँ के प्रति प्यार के भावों ने ले ली।
इस गीत को 1966 में रीलिज हुई फिल्म “दादी माँ” के लिये मन्ना दा और महेन्द्र कपूर ने गाया था और संगीत दिया था रोशन ने।
फिल्म में मुख्य भूमिका में थे अशोक कुमार, माँ का किरदार किया था बीना रॉय ने, दादी माँ बनी थी दुर्गा खोटे। ये गीत फिल्माया गया था बीना रॉय, दिलीप राज और काशीनाथ के ऊपर।
आज दुनिया की सभी माँओं को ये गीत समर्पित है -
उसको नहीं देखा हम ने कभी
पर इसकी ज़रूरत क्या होगी
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी
उसको नहीं देखा हम ने कभी…
इंसान तो क्या देवता भी
आँचल में पले तेरे
है स्वर्ग इसी दुनिया में
कदमों के तले तेरे
ममता ही लुटाये जिसके नयन ओ ओ…
ममता ही लुटाये जिसके नयन
ऐसी कोई मूरत क्या होगी
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी
उसको नहीं देखा हम ने कभी…
क्यूँ धुप जलाये दुखो की
क्यूँ ग़म की घटा बरसे
ये हाथ दुआओं वाले
रहते हैं सदा सर पे
तू है तो अंधेरे पथ में हमें ओ ओ..
तू है तो अंधेरे पथ में हमें
सूरज की ज़रूरत क्या होगी
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी
उसको नहीं देखा हम ने कभी…
कहते हैं तेरी शान में जो
कोई ऊँचे बोल नहीं
भगवान के पास भी माता
तेरे प्यार का मोल नहीं
हम तो ये ही जाने तुझ से बड़ी ओ ओ..
हम तो ये ही जाने तुझ से बड़ी
संसार की दौलत क्या होगी
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी
उसको नहीं देखा हम ने कभी…
पर इसकी ज़रूरत क्या होगी
ऐ माँ, ऐ माँ तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी, क्या होगी
उसको नहीं देखा हम ने कभी…

इस पोस्ट का फिलहाल अंत कुंवर बेचैन जी की लिखी इन चंद लाइनों के साथ -
अभी उफनती हुई नदी हो,
अभी नदी का उतार हो माँ,
रहो किसी भी दशा-दिशा में,
तुम अपने बच्चों का प्यार हो माँ।
नरम सी बाहों में खुद झुलाया,
सुना के लोरी हमें सुलाया ,
जो नींद भर कर कभी न सोई,
जनम-जनम की जगार हो माँ।

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