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आज तो क्या पूरी जिंदगी भी कम पड़ेगी
असितगिरिसमं स्यात् कज्जलं सिंधुपात्रे सुरतरुवर शाखा लेखनी पत्रमुर्वी ।
लिखती यदि गृहित्वा शारदा सर्वकालं तदपि तव गुणानम् माँ पारं न याति ।।
हिमालय समान काजल को समुद्र रूपी दवात में घोल कर देव वृक्ष की कलम से स्वयं शारदा - सरस्वती संपूर्ण काल में लिखे तो भी माँ के गुणों का वर्णन नहीं किया जा सकता ।
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