Saturday, May 6, 2017

*दृष्टिकोण संतुलन : सफल जीवन* 🍂🌏🍂🌏🍂🌏🍂🌏🍂🌏 प्रसन्नता एक मनोभाव है,, एक सकारात्मक मनोदशा है।। हमारी जैसी मन: स्थिति होती है वैसे ही हमारे शरीर में भौतिक रासायनिक परिवर्तन घटित होते हैं।। हमारी मनोदशा जीवन की परिस्थितियों के प्रति जन्म लेने वाली प्रतिक्रिया से जुड़ी होती है और हमारी प्रसन्नता व खिन्नता भी इस बात पर निर्भर करती है कि प्रतिकूल और अनुकूल घटनाओं से हमारा मन कितना प्रभावित होता है। आमतौर पर व्यक्ति बाहरी परिस्थितियों में अपनी प्रसन्नता खोजता है जिन पर उसका नियंत्रण नहीं होता ।परिस्थितियां उसे अपने प्रवाह में बहाती रहती है,, अपने अनुसार चलाती रहती है।। कभी सुखी करती है तो कभी दुखी कर देती है,, कभी उत्साह,, उल्लास व रोमांच से भर देती हैं तो कभी निराशा,, अवसाद देती हैं। भृगु संहिता  अनुसार "मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं,, वरन् उसका निर्माता,, नियंत्रणकर्ता और स्वामी है।।" वह चाहे तो अपनी मन: स्थिति संवारकर अपनी परिस्थितियों को बदल सकता है, मन: स्थिति में परिवर्तन लाकर हम अपनी परिस्थिति को बदल सकते हैं,, अपनी मनोनुकूल प्रसन्नता को पुनः प्राप्त कर सकते हैं। जब व्यक्ति को मिलने वाली प्रसन्नता,, खुशी का कारण बाहरी होता है तो इसके साथ उसे यह डर भी हो जाता है कि कहीं उसकी इस खुशी,, प्रसन्नता का आधार छिन न जाए।। श्रीमद्भागवगीता में कहा गया है- संशय करने वाले मनुष्यों को प्रसन्नता न तो इस लोक में मिलती है और न परलोक में।। मनुष्य को जो भी प्राप्त होता है उससे अधिक पाने की कामना उसके अंदर जन्मती है।। ये लोभ,, लालच और महत्वाकांक्षा ही उसके तनाव और भय का कारण बनती है जिसके परिणामस्वरूप उसकी प्रसन्नता जल्द ही तिरोहित हो जाती है,, विलीन हो जाती है। प्रसन्नता विशुद्ध रूप से एक ऐसी मनोदशा है जो पूर्णतया आंतरिक मन: स्थिति पर निर्भर करती है। उदात्त और संतुलित दृष्टिकोण वाले व्यक्ति हर परिस्थिति में हंसते रहते हैं। 🍂🌏🍂🌏🍂🌏🍂🌏🍂🌏 *🐚अंर्तजनित् प्राफुल्यित: प्रभात🐚*

*दृष्टिकोण संतुलन : सफल जीवन*
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प्रसन्नता एक मनोभाव है,, एक सकारात्मक मनोदशा है।। हमारी जैसी मन: स्थिति होती है वैसे ही हमारे शरीर में भौतिक रासायनिक परिवर्तन घटित होते हैं।। हमारी मनोदशा जीवन की परिस्थितियों के प्रति जन्म लेने वाली प्रतिक्रिया से जुड़ी होती है और हमारी प्रसन्नता व खिन्नता भी इस बात पर निर्भर करती है कि प्रतिकूल और अनुकूल घटनाओं से हमारा मन कितना प्रभावित होता है।

आमतौर पर व्यक्ति बाहरी परिस्थितियों में अपनी प्रसन्नता खोजता है जिन पर उसका नियंत्रण नहीं होता ।परिस्थितियां उसे अपने प्रवाह में बहाती रहती है,, अपने अनुसार चलाती रहती है।। कभी सुखी करती है तो कभी दुखी कर देती है,, कभी उत्साह,, उल्लास व रोमांच से भर देती हैं तो कभी निराशा,, अवसाद देती हैं। भृगु संहिता  अनुसार "मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं,, वरन् उसका निर्माता,, नियंत्रणकर्ता और स्वामी है।।" वह चाहे तो अपनी मन: स्थिति संवारकर अपनी परिस्थितियों को बदल सकता है, मन: स्थिति में परिवर्तन लाकर हम अपनी परिस्थिति को बदल सकते हैं,, अपनी मनोनुकूल प्रसन्नता को पुनः प्राप्त कर सकते हैं।

जब व्यक्ति को मिलने वाली प्रसन्नता,, खुशी का कारण बाहरी होता है तो इसके साथ उसे यह डर भी हो जाता है कि कहीं उसकी इस खुशी,, प्रसन्नता का आधार छिन न जाए।। श्रीमद्भागवगीता में कहा गया है- संशय करने वाले मनुष्यों को प्रसन्नता न तो इस लोक में मिलती है और न परलोक में।। मनुष्य को जो भी प्राप्त होता है उससे अधिक पाने की कामना उसके अंदर जन्मती है।। ये लोभ,, लालच और महत्वाकांक्षा ही उसके तनाव और भय का कारण बनती है जिसके परिणामस्वरूप उसकी प्रसन्नता जल्द ही तिरोहित हो जाती है,, विलीन हो जाती है।

प्रसन्नता विशुद्ध रूप से एक ऐसी मनोदशा है जो पूर्णतया आंतरिक मन: स्थिति पर निर्भर करती है। उदात्त और संतुलित दृष्टिकोण वाले व्यक्ति हर परिस्थिति में हंसते रहते हैं।
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*🐚अंर्तजनित् प्राफुल्यित: प्रभात🐚*

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