Saturday, May 6, 2017

सब कुछ बदल रहा है ! जो जड़ है वो चेतन है जो "चेतन " है वह "जड़ " है कुछ तो गड़बड़ है सब कुछ बदल रहा है .........! रिश्ते क्यों "रीत " रहे है ........? "प्रीत " क्यों " बीत " रही है ....! रिश्तों में केवल"अपने"-पन का वास है अपनत्व और आत्मीयता " दूर "की बात है ........ कौन ! अपना कौन ? पराया........! अजीब विरोधाभास है.......! जो "पास " है वो "ख़ास " है जो "ख़ास" है वो दूर ये कैसी खटास है "आस" है न "पास" है फिर भी इक विश्वास है वो मिठास है "कोई"तो होगा " अपना सपना या हकीकत...? यही तो विरोधाभास है......! सब कुछ बदल रहा है .......! "माँ" ! तू कहती है ,कितना बदल गया है तू ! कैसा है तू ..............! सच कहता हूँ में तेरी आँखों के "कोर"में वो "सदियो"से ठहरा हुआ "आँसु "जो आकुल-व्याकुल हैआज भी "वैसा " ही है ..... नहीं बदला न बदलेगा वो "आँसु " वो "आस " सब कुछ बदल रहा है ............ रचनाकार बी.डी.गुहा रायपुर छत्तीसगढ़ 🙏

सब कुछ बदल रहा है  !

जो जड़ है वो चेतन है
जो "चेतन " है वह "जड़ " है
   कुछ तो गड़बड़ है
सब कुछ बदल रहा है .........!
रिश्ते क्यों "रीत " रहे है ........?
"प्रीत " क्यों " बीत " रही है ....!
रिश्तों में केवल"अपने"-पन का वास है
अपनत्व और आत्मीयता " दूर "की बात है ........
कौन ! अपना कौन ? पराया........!
अजीब विरोधाभास है.......!
जो "पास " है वो "ख़ास " है
जो "ख़ास" है वो दूर ये कैसी खटास है
      "आस" है  न "पास" है
फिर भी इक विश्वास है वो मिठास है
    "कोई"तो होगा " अपना
  सपना या हकीकत...?
यही तो विरोधाभास है......!   
   सब कुछ बदल रहा है .......!
"माँ" ! तू कहती है ,कितना बदल गया
है तू ! कैसा है तू ..............!
    सच कहता हूँ में
तेरी आँखों के "कोर"में वो "सदियो"से
ठहरा हुआ "आँसु "जो आकुल-व्याकुल हैआज भी "वैसा " ही है .....
नहीं बदला न बदलेगा वो "आँसु "
        वो "आस "
सब कुछ बदल रहा है ............
रचनाकार बी.डी.गुहा रायपुर
       छत्तीसगढ़
            🙏

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