सब कुछ बदल रहा है !
जो जड़ है वो चेतन है
जो "चेतन " है वह "जड़ " है
कुछ तो गड़बड़ है
सब कुछ बदल रहा है .........!
रिश्ते क्यों "रीत " रहे है ........?
"प्रीत " क्यों " बीत " रही है ....!
रिश्तों में केवल"अपने"-पन का वास है
अपनत्व और आत्मीयता " दूर "की बात है ........
कौन ! अपना कौन ? पराया........!
अजीब विरोधाभास है.......!
जो "पास " है वो "ख़ास " है
जो "ख़ास" है वो दूर ये कैसी खटास है
"आस" है न "पास" है
फिर भी इक विश्वास है वो मिठास है
"कोई"तो होगा " अपना
सपना या हकीकत...?
यही तो विरोधाभास है......!
सब कुछ बदल रहा है .......!
"माँ" ! तू कहती है ,कितना बदल गया
है तू ! कैसा है तू ..............!
सच कहता हूँ में
तेरी आँखों के "कोर"में वो "सदियो"से
ठहरा हुआ "आँसु "जो आकुल-व्याकुल हैआज भी "वैसा " ही है .....
नहीं बदला न बदलेगा वो "आँसु "
वो "आस "
सब कुछ बदल रहा है ............
रचनाकार बी.डी.गुहा रायपुर
छत्तीसगढ़
🙏
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