* पितृभिः ताडितः पुत्रः
शिष्यस्तु गुरुशिक्षितः।
धनाहतं सुवर्णं च
जायते जनमण्डनम्* ॥
पिता द्वारा पीटा गया पुत्र,
गुरुदेव द्वारा शिक्षा दिया गया शिष्य,
और हथौडे से पीटा गया सोना,
लोगों में अवश्य आभूषणरुप ही बनता है ।
*सुशीलो मातृपुण्येन, पितृपुण्येन चातुरः ।*
*औदार्यं वंशपुण्येन, आत्मपुण्येन भाग्यवान ।।*
*अर्थात-* कोई भी इंसान अपनी माता के पुण्य से सुशील होता है, पिता के पुण्य से चतुर होता है, वंश के पुण्य से उदार होता है और अपने स्वयं के पुण्य होते हैं तभी वो भाग्यवान होता है।
*अतः भाग्य प्राप्ति के लिए सत्कर्म आवश्यक है।*
🙏🏻💐🌹 नमस्ते जी 🌹💐🙏🏻
No comments:
Post a Comment